पिछली दो किस्तों में आपने हैदराबाद में शॉर्ट टर्म कॉन्ट्रैक्ट मैरिज पर पड़ा और जाना कि कैसे ये पूरा नेटवर्क काम कर रहा है.पड़ताल के आखिरी हिस्से में जानें, क्या कहते हैं इस्लामिक स्कॉलर, कहां पर इसकी इजाजत है, और कहां नहीं. मामले के क्या कानूनी पहलू हैं जो इसपर रोक नहीं लग सकी. साथ ही सोशल सेक्टर की उस लीडर से भी हमने बात की, जो लंबे समय से इसपर काम कर रही हैं.
नब्बे के दशकमें एयरपोर्ट परअमीनाके रेस्क्यू के साथ पहली बार मामला उछला लेकिन अरब शेखों से मुताह यानी शॉर्ट-टर्म हैदराबादी शादियां सत्तर के दशक से हो रही हैं.
इसकी शुरुआत निजामी दौर से हो गई थी. हुआ यूं कि दुनिया के सबसे बड़े अमीरों में शुमार निजामों ने अपनी दौलत की रखवाली के लिए यमन के मजबूत लोगों को बुला रखा था. लंबे-तगड़े ये पुरुष चाऊश कहलाते.
चाऊश बाहर से आए थे, घरबार और पत्नियां छोड़कर. जरूरतें पूरी करने के लिए वे हैदराबाद की ही औरतों से शादियां करने लगे. इन्हीं में से कुछ चाऊश छंटकर अलग किए जाने लगे. इनका काम था, ज्यादा से ज्यादा संतानों को जन्म देना ताकि उन्हें निजाम की फौज की तरह खड़ा किया जा सके. इन्हें इसी बात के पैसे और अच्छी खुराक दी जाती.
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इधर आजादी के भारत हैदराबाद रियासत के भारत में मिलने के साथ निजामी दौर खत्म हो गया. इसी के साथ वेल्थ गार्ड्स यानी चाऊश का काम भी खत्म हो चुका. बहुत से लोग पहले ही अपने मुल्क लौट चुके थे. लेकिन जो बाकी थे, उनमें हिंदुस्तानी और यमनी दोनों ही खून दौड़ता था.
सत्तर के दशक के आसपास ये वंशज मांग करने लगे कि उन्हें अरब देशों की नागरिकता दी जाए क्योंकि उनके दादे-परदादे वहीं के हैं. रिजेक्शन के बाद इन्होंने इसकी काट खोज निकाली- शेख मैरिज.
चाऊश अब भी हैदराबाद के बारकस जैसे इलाकों में बसे हुए हैं. यही वो क्षेत्र है, जहां के बारे में कहा जाता है कि यहां लगभग हर ऊंची हवेली के नीचे लड़कियों की देह दबी है.
चाऊशों के वंशज अपनी बेटियों का शेखों संग मुताह करने लगे. मुताह का मतलब है आनंद या प्लेजर.
इसी प्लेजर पर धर्म की कोटिंग कर दी गई क्योंकि इस्लाम में निकाह के अलावा किसी भी तरह से शारीरिक संबंध जिनायानी व्याभिचार है. आसान शब्दों में कहें तो मुताह शादी का वो करार है, जिसमें शादी टूटना पहले से तय रहता है.
हैदराबादी लड़कियों की शेखों से शुरुआती शादियां मुताह नहीं थीं. लड़कियां जातीं और वहीं बस जातीं. बाद में उनके परिवार भी वहीं चले जाते. लेकिन वक्त के साथ ये शॉर्ट टर्म मैरिज में बदल गया. अब चाऊशसे ताल्लुक रखने वाली आगे की पीढ़ियां इस काम में हैं. इन्हीं से कुछ एजेंट बन चुके. वे अरबी, हिंदी और तेलुगु बोल पाते हैं. भाषा और कल्चर की यही खूबी उन्हें शेखों और लड़कियों के बीच ब्रिज बनाती है.
लेकिन शरीर की जरूरत पूरी करने के लिए शादी की क्या जरूरत, शेख सेक्स वर्करों के पास भी तो जा सकते हैं?
इस बात का जवाब हमें जमीला निशात देती हैं, जो शाहीन वुमन रिसोर्स एंड वेलफेयर एसोसिएशन की चेयरपर्सन हैं.
इनका एनजीओ लंबे समय से शेख मैरिज को लेकर भी एक्टिव है. जमीला कहती हैं- पुराने वक्त में पुरुष लंबे सफर या जंग पर जाते तो जिस्मानी जरूरत के लिए परेशान होते थे. तभी मुताह मैरिज शुरू हुई क्योंकि सीधे सेक्स वर्कर के पास हराम है. लिहाजा आदमी महर देकर बाकायदा शादी करते और थोड़े दिनों बाद अलग हो जाते.
इस्लाम में तो शादियां वैसे भी कॉन्ट्रैक्ट हैं तो मुताह पर आपकी नाराजगी क्यों?
इस्लाम में वैसे तो शादी अपने-आप में कॉन्ट्रैक्ट है लेकिन ये शॉर्ट टर्म करार था. वो भी सिर्फ पैसों के लिए. आदमी जितने दिन साथ रहेगा, शादी उतने ही दिनों की रहेगी. हमारा एतराज इसपर है कि निकाहनामा के साथ ही साथ एक तरह से तलाकनामा भी तैयार हो चुका होता है. लड़की अक्सर कमउम्र होती है और उसे शादी के इस करार की कोई जानकारी नहीं होती.
शेख आते हैं और 10-15 दिन होटलों में साथ गुजारकर चले जाते हैं. कई बार तो वे तलाक भी नहीं देते. इसमें शादी का मोटिवेशन ही एक तरफ पैसा और दूसरी तरफ एंजॉयमेंट है.
मुताह मैरिज शेख अपने देशों में क्यों नहीं कर रहे, भारत क्यों आ रहे हैं?
अरब देशों में पहली शादी अरब की लड़की से ही करनी होती है. वहां कई चीजें अलग होती हैं. जैसे कई मुस्लिम देशों में लड़की जैसे ही प्यूबर्टी की एज में पहुंची, यानी उसका पहला पीरियड आया, घर के ऊपर एक खास रंग का झंडा लग जाता है. लोग समझ जाते हैं और शादी के लिए अप्रोच करने लगते हैं. इस तरह से वहां पहली शादी हो जाती है.
शेखों को भारी-भरकम महर देनी होती है. साथ ही पत्नी के नाज उठाने होते हैं. गल्फ में पति अगर मां बन चुकी अपनी पत्नी से चाहे कि वो उसकी औलाद को दूध पिलाए तो इसके लिए भी उसे रिक्वेस्ट करनी होती है. दूसरी तरफ, हैदराबाद में औरतें सस्ती हैं. यहां कम रकम देकर शादी हो जाती है, और जब चाहे अलग हुआ जा सकता है.
शेख क्या वजह देते हुए हैदराबाद आ रहे हैं?
मेडिकल टूरिज्म. आप यहां के कॉर्पोरेट अस्पताल चले जाइए, वहां अंग्रेजी के साथ अरेबिक में भी सारी बातें लिखी हैं, जबकि ये तेलुगु और उर्दू बोलने वाला शहर है. मैंने एक बार पूछा तो रिसेप्शन पर जवाब मिला कि रिच पेशेंट्स अरबी जानने वाले हैं, उनका खयाल तो रखना होगा. शेख आते हैं मरीज बनकर, लेकिन ज्यादातर का मकसद कुछ और रहता है. वे अपने मुल्क से ही रेडी होकर आते हैं. कईयों के पास लड़कियों की तस्वीरें पहुंच चुकी होती हैं.
क्या कोई खास समय है, या सालभर आमदरफ्त चलती है?
लगभग पूरे साल ही, लेकिन रमजान में उनका आना बढ़ जाता है. दरअसल, इस वक्त वहां कई चीजों पर मनाही है. लेकिन हैदराबाद में कोई रोकटोक नहीं. आप आइए और जो चाहे कीजिए. तब ज्यादा लोग यहां आते हैं. बूढ़े और अमीर शेख वर्जिन लड़कियों की खोज में रहते हैं. उन्हें लगता है कि उनके साथ रिश्ता बनाना उन्हें जवानी लौटा देगा. वर्जिनिटी का बाकायदा टेस्ट होता है.
कई पुराने शेखों के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे पल्स छूकर ही ताड़ लेते हैं कि लड़की वर्जिन या नहीं.
लड़कियां कैसे शॉर्टलिस्ट की जाती हैं?
हैदराबाद हो, चाहे गल्फ- इस काम में कई एजेंट्स इनवॉल्व होते हैं. यहां पर शादी के नाम पर लड़कियों की परेड होती है. उन्हें ऐसे कपड़ों में सजाया जाता है कि शरीर के उतार-चढ़ाव दिखें. शेख के सामने वे वॉक करती हैं. इनमें से कुछ छांटी जाती हैं. शेख सबको हजार, पांच सौ का नजराना देता है. यह एक किस्म का टोकन अमाउंट है कि तुम अब इंतजार करो, नंबर आ सकता है.
शादी तय होने से लेकर होने के बीच कितना फासला रहता है?
लड़कियों की देख-दिखाई के बाद तुरंत शादी नहीं होती. इसमें तीन दिन का वक्त लिया जाता है. इसमें मजहब का भी तड़का लगता है. शेख तीन दिनों तक सूरा पढ़ने का दिखावा करता है ताकि ख्वाब में समझ आ सके कि कौन सी लड़की उसकी बीवी बनने लायक है. लेकिन असल में इस वक्त वो ये कैलकुलेट करता है कि किसकी तरफ वो सेक्सुअली सबसे ज्यादा अट्रैक्टेड है. तीन दिनों बाद निकाह हो जाता है. एक बार जाल में फंस चुकी लड़की पर घरवाले ही इतना दबाव बनाते हैं कि वो आगे भी कई शादियों को राजी हो जाती है.
हैदराबाद में एक इलाका है- बारकस. वहां हमने 100 घरों के सर्वे में पाया था कि 33 घरों में शेख मैरिज ही हुई थी.लंबे-चौड़े घर बने हुए हैं, जिनके नीचे इन लड़कियों की आह दबी हुई है.
कुछ साल पहले एक लड़की ने खुदकुशी कर ली थी क्योंकि उसकी 17 बार शादियां करवाई गईं. मरते हुए उसने अपनी मां को एक लेटर भी लिखा था, जो लोकल मीडिया में खूब छपा.
अगर इतना कुछ हो रहा है तो धरपकड़ क्यों नहीं हो रही?
ये इतना आसान नहीं. एक शादी से कम से कम पांच घर पलते हैं. कोई नहीं चाहेगा कि कारोबार डूबे. फिर इसमें मजहब और शहर की भी बदनामी है. सितंबर 2017 में शेखों और दलालों का पूरा नेटवर्क पकड़ाया था. इसके बाद से शादियां वॉट्सएप पर हो रही हैं. बाद में लड़की को विजिटर वीजा पर शेख के देश भेज दिया जाता है, जहां वो महीने-दो महीने रहकर वापस लौटा दी जाती है.
ज्यादातर काम ऑनलाइन होता है. आधार पर बर्थ डेट बदल दी जाती है. दस्तावेज सारे पक्के बनते हैं. कई बार हमने ऐसी शादियां रोकने की कोशिश कीं लेकिन कागजात निकालने में स्कूल भी कोऑपरेट नहीं करते, न ही होटल या अस्पताल.
हमारी स्ट्रेटजी स्ट्रॉन्ग हैं तो उनकी हमसे भी तगड़ी है.
पॉक्सो की वजह से मदद हो रही है लेकिन सब गुपचुप होने की वजह से हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाते. वैसे भी खुद पेरेंट्स अपनी बच्चियों को इस काम में डालते हैं, वे कैसे इसकी शिकायत कर सकते हैं. ज्यादा से ज्यादा एजेंट्स की शिकायत होती है कि बेटी को काम के बहाने अरब भेजकर उसे फंसा दिया, वो भी तब जब पेरेंट्स को पूरे पैसे न मिल पाएं हों.
शादियों में काजी का भी बड़ा रोल है.
जमीला बताती हैं, यहां कई पुराने काजियों ने अपनी कोठियों में ही कमरे बनवा रखे हैं, जो शेखों की जरूरत के हिसाब से सजे होते हैं. मेडिकल वीजा पर आए शेख निकाह के बाद इन्हीं कमरों में ठहर जाते हैं. वे यहां ज्यादा सेफ रहते हैं क्योंकि पुलिस भी इनपर हाथ डालने से बचती है. 2017 में ऐसा ही एक काजी भी पकड़ाया था, जिसने सैकड़ों शेख मैरिज करवाई थी. बाद में वो छूट निकला.
हमारे पास कई ऐसी वीडियो आई, जिसमें काजी की मौजूदगी में पैसों का लेनदेन हो रहा है. पास ही कम उम्र दिखती लड़की है, जिसकी किसी शेख से शादी हो रही है.
एजेंट के जरिए ऐसे ही एक काजी से हम मिलने की कोशिश करते हैं. वो पहले वीडियो कॉल करने को कहता है. कॉल पर शेख मैरिज से साफ इनकार करते हुए वो कहता है- हम तो छोटी-मोटी शादियां कराते हैं. शेख मैरिज हमारे पास नहीं आती.
मुताह के धार्मिक पहलू को समझने हम डॉ रजा अब्बास से बात करते हैं, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में शिया थियोलॉजी के एक्सपर्ट हैं.
डॉ अब्बास कहते हैं- इस्लाम में वैसे तो शादी ही सोशल कॉन्ट्रैक्ट है, लेकिन मुताह कुछ मामलों में निकाह से अलग है.
ये टाइम-बाउंड कॉन्ट्रैक्ट है, जो कुछ दिनों से लेकर महीनों का भी हो सकता है. जैसे अगर हम परमानेंट रिश्ते में जाने से पहले किसी के साथ कुछ दिन बिताकर देखना चाहें कि वो हमारे लिए कितना सूटेबल है तो मुताह एक तरीका हो सकताहै.इसमें कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी साथ ही साथ रहती है. अगर दो लोग एक-दूसरे को अपने मुताबिकपाएं तो कॉन्ट्रैक्टरिन्यू भी हो सकता है. इसमें दोनों की आपसी सहमति होनी चाहिए.
मुस्लिमों में शिया समुदाय ही इसे मानता है, सुन्नी इसे लॉ-फुल नहीं मानते. भारत में ये बहुत ज्यादा प्रैक्टिस में नहीं है, लेकिन है जरूर.
क्या इसमें शादी की कोई उम्र भी होती है?
हां. इसके लिए दोनों काआकिल और बालिग होना जरूरी है. लड़कियों के लिए बालिग का मतलब 18 साल नहीं, बल्कि प्यूबर्टी के बाद है. लेकिन जरूरी नहीं कि प्यूबर्टी के बाद कोई पूरी तरह से मैच्योर हो तो उम्र दो साल कम या ज्यादा भी हो सकती है. मैच्योरिटी की उम्र बदलती रहती है.
मुताह निकाह को सुन्नी मुस्लिम भले ही हिकारत की नजर से देखते हों लेकिन उनमें भी मिलती-जुलती एक शादी है, जिसका नाम है निकाह मिस्यार.
इसमें एक सामान्य शादी से काफी कुछ अलग होता है, जैसे पति-पत्नी रिश्ते के बाद भी अलग-अलग रह सकते हैं. केवल जरूरत भर का मेलजोल भी काफी है. पत्नी इसमें पति से कोई मदद नहीं लेती तो पति भी घरेलू कामों के लिए पत्नी का मुंह नहीं देखता. हालांकि इस शादी का चलन देश में सुनाई नहीं देता.
कस्टम की कानूनी पेचीदगी को समझने के लिए हमारी सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील शशांक शेखर झा से भी बात हुई.
वे कहते हैं- कई कानूनी कमियां हैं, जिसकी वजह से शॉर्ट टर्म शादियां अब भी हो रही हैं. जैसे, हमारे यहां शादियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है. इस बात का फायदा इस प्रैक्टिस में लिया जा रहा है, जहां बाहरी लोग आकर शादियां करके वापस लौट रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर कई याचिकाएं भी पेंडिंग हैं.
जहां तक माइनर लड़की की शादी की बात है, तो मुस्लिम पर्सनल लॉ में ये वैध है अगर लड़की प्यूबर्टी तक पहुंच चुकी हो. लेकिन इसमें भी कई परेशानियां हैं. अदालत माइनर से शारीरिक संबंध को रेप मानती है, चाहे वो शादी में ही क्यों न हुआ हो, लेकिन मुस्लिम शादियों में इस पहलू कोकानून भी नजरअंदाज करता आयाहै. अब इसे लेकर भी नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन लगाई हुई है ताकि शादी की मिनिमम उम्र तय हो सके.
कुछ तो वे लोग चालाकी से काम कर रहे हैं कि पकड़ में नहीं आते, और फिरकानूनी अस्पष्टता की वजह से पुलिस भी केस रजिस्टर करने में आनाकानी करती है. कानून बनने से पहले ट्रिपल तलाक के मामले भी बहुत कम रजिस्टर होते थे. कोर्ट में कई याचिकाएं लगी हुई हैं, जो इसपर काम कर रही हैं.
शेख मैरिज पर हमने दक्षिणी हैदराबाद केसंबंधित पुलिस अधिकारी से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. साल 2017 में पूरे रैकेट पर कार्रवाई कर चुके अधिकारी ने भी इसपर बोलने से इनकार कर दिया.
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