बिहार के बेतिया राजघराने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इस राजपरिवार की 15,215 एकड़ से ज्यादा जमीन अब बिहार सरकार के कब्जे में आ गई है. सरकार का मानना है कि इस बेशकीमती जमीन पर अवैध कब्जा हो रहा है. एक जमाने में बेतिया राजघराने का रसूख इतना था कि आज भी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज और गोरखपुर जैसे शहरों में उनकी 143 एकड़ जमीनें हैं. वर्तमान में इन जमीनों की कीमत करीब 8 हजार करोड़ रुपए है.
दरअसल, बेतिया राज का कोई वारिस नहीं था. इसलिए 'सेंट्रल प्रोविंस कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक्ट' के तहत बिहार सरकार इस संपत्ति की देखरेख कर रही थी. ये एक्ट भारत की आजादी से पहले (1899) का है, जिसके तहत सरकार ऐसी संपत्तियों की देखभाल करती है, जो मानसिक तौर पर अस्वस्थ हैं या फिर नाबालिग होने के कारण मैनेजमेंट नहीं देख सकते हैं.
बिहार विधानसभा में पास हुआ बिल
बिहार सरकार अब बेतिया राज की प्रॉपर्टी की देखरेख ठीक उसी तरह करेगी, जैसे अपनी बाकी संपत्ति की करती है. इन जमीनों से अतिक्रमण हटाने की शुरुआत तुरंत की जाएगी. बिहार सरकार का प्लान है कि वह यूपी में स्थित बेतिया राज की जमीन का कब्जा भी ले लेगी. बिहार विधानसभा में इसे लेकर एक बिल पास हो चुका है.
शाहजहां से मिली राजा की उपाधि
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बेतिया राज की शुरुआत चंपारण क्षेत्र में हुई. इसका इतिहास उज्जैन सिंह और उनके बेटे गज सिंह से जुड़ा है. इन्हें 17वीं शताब्दी में बादशाह शाहजहां ने राजा की उपाधि दी. बेतिया राज के आखिरी राजा हरेंद्र किशोर सिंह की 1893 में मौत हो गई. कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण उनकी पहली पत्नी को राज संपत्ति की जिम्मेदारी मिली. 1896 में उनकी मौत हो गई. इसके बाद ये जिम्मेदारी महाराज की दूसरी पत्नी महारानी जानकी कुंवर के पास चली गई. लेकिन ब्रिटिश राज में ही इस संपत्ति की जिम्मेदारी 1897 में कोर्ट ऑफ वार्ड्स मैनेजमेंट के अधीन आ गई.
कैसे हुई बेतिया राज की शुरुआत?
बेतिया राज की बात करें तो सरकारी वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक उज्जैन सिंह और उनके बेटे गज सिंह को बादशाह शाहजहां (1628-58) से राजा की उपाधि मिली थी. 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान यह परिवार स्वतंत्र हो गया. ब्रिटिश शासन के समय इस राजपरिवार पर राजा जुगल किशोर सिंह का कब्जा था. बेतिया के अंतिम महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह थे.
क्या था कोर्ट ऑफ वार्ड्स?
कोर्ट ऑफ वार्ड्स के नियंत्रण में आने के बाद से इसे बेचा या किसी को हस्तांतरित नहीं किया जा सका. दरअसल, कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक कानूनी निकाय था, जो तब तक उत्तराधिकारियों और उनकी सम्पदा की रक्षा करता था, जब उत्तराधिकारी को नाबालिग माना जाता था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1797 में कोर्ट ऑफ वार्ड्स की स्थापना की, जो 1540 से 1660 तक अस्तित्व में रहे इंग्लिश कोर्ट ऑफ वार्ड्स एंड लिवरीज पर आधारित था.
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