केस और ग्रैंड ज्यूरी के नोटिस के बाद अब अडानी केस में आगे क्या-क्या होगा? जानिए अमेरिकी कानून की प्रक्रिया

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बिजनेस टाइकून गौतम अडानी एक बार फिर मुश्किलों से घिर गए हैं. इस बार अमेरिका की एक अदालत ने गौतम अडानी समेत आठ लोगों को धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के मामले में आरोपी बनाने का फैसला किया है और गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. गौतम अडानी पर आरोप है कि उन्होंने अमेरिका के निवेशकों से पैसे जुटाए और उन पैसों से भारत में सरकारी अधिकारियों को रिश्वत ऑफर की. ये रिश्वत भी उन प्रोजेक्ट्स के लिए दी गई, जिससे 20 वर्षों में अडानी ग्रुप की कंपनी को 2 बिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपयों में करीब 16 हजार 881 करोड़ रुपये का मुनाफा होने का अनुमान है.

सवाल उठ रहा है कि केस दर्ज होने और ग्रैंड ज्यूरी से नोटिस मिलने के बाद अडानी मामले में अब अमेरिकी अदालत में आगे क्या होगा? क्या अडानी की गिरफ्तारी होगी या कोर्ट में पेशी? आइए अमेरिकी कानून के नजरिए से पूरा मामला समझते हैं?

अडानी ग्रुप पर क्या आरोप?

ये पूरा मामला सोलर एनर्जी के कुछ प्रोजेक्ट्स से जुड़ा है. दिसंबर 2019 से जुलाई 2020 के बीच भारत सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने लेटर ऑफ अवार्ड जारी किए, जिसे आम भाषा में एग्रीमेंट या समझौता कहते हैं. ये लेटर ऑफ अवॉर्ड जिन दो कंपनियों के लिए जारी हुए, उनमें एक कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड है. दूसरी कंपनी मॉरिशस की एज्योर पावर ग्लोबल लिमिटेड है.

आरोप है कि दोनों कंपनियों का एक-दूसरे के साथ अनौपचारिक करार था और साल 2019 और 2020 में भारत सरकार ने इन दोनों कंपनियों को कुल 12 GIGA-WATT की सोलर एनर्जी का उत्पादन करने की इजाजत दी थी.

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इनमें 8 GIGA-WATT की सोलर एनर्जी का उत्पादन अडानी की कंपनी को करना था और 4 GIGA-WATT की सोलर एनर्जी का उत्पादन एज्योर कंपनी को करना था. उस समय अडानी ने खुद इसे दुनिया का सबसे बड़ा सोलर एनर्जी एग्रीमेंट बताया था. हालांकि, बाद में यही एग्रीमेंट उनके चुनौती लिए बना और अब संकट लेकर आ गया है.

चूंकि, कोई भी प्राइवेट कंपनी सीधे किसी सरकार को बिजली नहीं बेच सकती. इन दोनों के बीच भारत सरकार की कंपनी का होना जरूरी होता है और इस मामले में भी भारत सरकार की कंपनी SECI अलग-अलग राज्यों से इस सोलर एनर्जी को खरीदने के लिए बात की, लेकिन ज्यादा रेट होने के कारण कोई भी राज्य इन कंपनियों के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं हुआ.

... फिर बनाया रिश्वत देने का प्लान?

अमेरिकी अभियोजकों का आरोप है कि जब महंगे रेट के कारण कोई समझौता नहीं हुआ तो गौतम अडानी ने भारत की राज्य सरकारों और सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने का प्लान बनाया और इसमें विदेश कंपनी एज्योर भी उनका साथ दे रही थी.

'और कुछ ही महीने में मिल गए बड़े प्रोजेक्ट्स'

न्यूयॉर्क की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक, करीब 2200 करोड़ रुपये की रिश्वत ऑफर किए जाने के कारण दोनों कंपनियों को वर्ष 2021 से 2022 के बीच कई राज्य सरकारों से सोलर एनर्जी के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स मिल गए. इनमें आंध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ की सरकारों का जिक्र है. इनमें 638 करोड़ रुपये की रिश्वत एज्योर कंपनी को देनी थी और करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपये की रिश्वत गौतम अडानी की कंपनी को देनी थी. रिश्वत का सबसे बड़ा हिस्सा करीब 2 हजार 29 करोड़ रुपये आंध्र प्रदेश की सरकार को मिला था.

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चूंकि रिश्वत का ये पैसा एक ऐसी कंपनी (ऐज्योर पावर ग्लोबल लिमिटेड) से जुड़ा था, जो अमेरिका के स्टॉक मार्केट में लिस्टेड थी, इसलिए अमेरिका में इसकी जांच हुई और न्यूयॉर्क की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने अब उन्हें इस मामले में आरोपी बनाने का फैसला किया है.

क्या कहता है अमेरिकीकानून?

दरअसल, अमेरिका में FCPA नाम का कानून है, जिसे Foreign Corrupt Practices Act कहते हैं. इसके तहत जो कंपनियां अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होती हैं, उन पर कई तरह के निर्देश लागू होते हैं. सबसे बड़ा निर्देश ये होता है कि वो दूसरे देशों के सरकारी अधिकारियों को रिश्वत नहीं दे सकते. लेकिन इस मामले में ठीक उलट हुआ. फिलहाल, अमेरिका में अभी इस पूरे मामले की जांच चल रही है और अमेरिका कह रहा है कि इस कंपनी ने उसके निवेशकों को धोखा दिया है और उन्हें जोखिम में डाला है.

अभियोग में दावा किया गया है कि अडानी ग्रीन और एज्योर के कर्ताधर्ताओं ने व्यावसायिक लाभ हासिल करने के लिए जानबूझकर रिश्वत की पेशकश की. गौतम अडानी और सागर अडानी पर प्रतिभूति धोखाधड़ी, साजिश और वायर धोखाधड़ी के आरोप हैं.

अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग ने भी उनके खिलाफ एक दीवानी मामला दायर किया है. अडानी और उनके भतीजे सागर के लिए अमेरिका में गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं. अदालत के रिकॉर्ड बताते हैं कि अभियोजकों ने उन वारंटों को विदेशी कानून प्रवर्तन को सौंपने की योजना बनाई है.

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कैसे शक के दायरे में आया पूरा मामला?

2022 में एज्योर कंपनी में नेतृत्व परिवर्तन हुए और बड़े बदलाव भी देखने को मिले. अमेरिकी की सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज (SEC) का दावा है कि परियोजना में शामिल कुछ अधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए कहा गया. बैठकें आयोजित की गईं कि रिश्वत का भुगतान कैसे किया जाए, ताकि किसी को पता ना चल सके. अडानी ग्रुप ने एज्योर को सलाह दी कि वो अपनी हिस्सेदारी छिपे हुए 'कॉर्पोरेट ट्रांजेक्शन्स' के जरिए अदा करे. इसके तहत एज्योर ने अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट आंध्र प्रदेश में 2.3 GW पावर सप्लाई के राइट्स अडानी ग्रीन को ट्रांसफर कर दिए. उसके बाद एज्योर ने दिसंबर 2022 और फरवरी 2023 में केंद्र सरकार की सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन को पत्र लिखा और कहा, आंध्र प्रदेश प्रोजेक्ट आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं है. इसलिए वो पीछे हट रहे हैं.

हालांकि, अमेरिका SEC का कहना है कि यह सिर्फ एक प्रीटेक्स्ट था ताकि एज्योर यह प्रोजेक्ट अडानी ग्रीन को ट्रांसफर कर सके. यह कदम एज्योर की तरफ से अडानी ग्रुप को उनकी रिश्वत की हिस्सेदारी चुकाने के लिए उठाया गया. वहीं, दिसंबर 2023 में अडानी ग्रीन ने घोषणा की कि उसने SECI के साथ आंध्र प्रदेश प्रोजेक्ट के अधिकांश हिस्से के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट साइन किया है.

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चूंकि जो कंपनियां अमेरिका के स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होती हैं, उन्हें वहां के सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन को भी सारी रिपोर्ट्स भेजनी होती हैं और इस मामले में भी जब SEC के पास रिपोर्ट आई तो ये मामला अमेरिका के शक के दायरे में आया. ऐसे मामलों में जब अमेरिका के आयोग के पास रिपोर्ट आती है तो वो इसकी जनरल इक्वायरी करवाता है. इस बीच, एज्योर कंपनी के अधिकारियों ने अमेरिका के आयोग से कुछ दस्तावेजों को छिपाने की कोशिश की तो ये जांच बढ़ती चली गई और इसमें दूसरी एजेंसियां भी शामिल हो गईं.

अडानी को पहले बचाने की हुई कोशिश?

जब FBI, डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन के एजेंट्स ने एज्योर कंपनी के चार अधिकारियों से पूछताछ की तो आरोप है कि उन्होंने भारत के प्रोजेक्ट्स से जुड़े सभी ईमेल्स, मैसेज और दूसरे डेटा को डिलीट कर दिया और गौतम अडानी को इस मामले में बचाने की कोशिश की.

अमेरिकी कोर्ट के दस्तावेज कहते हैं कि जिन चार अधिकारियों पर अडानी को बचाने के आरोप हैं, उनमें सिरिल कैबेनिज, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा और रूपेश अग्रवाल का नाम है. बाद में इन लोगों ने FBI को बयान दिया कि गौतम अडानी ने इस कंपनी के साथ मिलकर भारत में सोलर प्रोजेक्ट्स हासिल करने के लिए सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी थी और इसी बयान के आधार पर 24 अक्टूबर 2024 को ये मामला न्यूयॉर्क की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में पहुंचा.

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गुमराह करके जुटा लिया फंड?

अमेरिका की अदालत का कहना है कि जब गौतम अडानी और एज्योर के बीच जब सरकारी अधिकारियों को पैसा देने के लिए बात होती थी तो वो एक-दूसरे के लिए कोड वर्ड का इस्तेमाल करते थे. गौतम अडानी का कोड वर्ड में मिस्टर A और BIG MAN नाम था, जबकि विनीत जैन का V और SNAKE कोड वर्ड नाम था. इसी दरम्यान दोनों कंपनियों ने अमेरिकी बैंक और बाजार से पैसा जुटाए. उन्होंने बॉन्ड्स के जरिए अमेरिका के निवेशकों से 6 हजार 254 करोड़ रुपये इकट्ठा किए और लोन के जरिए 11 हजार करोड़ रुपये इकट्ठा किए. ये लोन अमेरिका के अलग-अलग वित्तीय संस्थानों से लिया गया. आरोप है कि इस लोन को हासिल करने के लिए और बॉन्ड्स के जरिए अमेरिका के निवेशकों से पैसा जुटाने के लिए गौतम अडानी की कंपनियों ने गलत जानकारी दी और अमेरिका के कानूनों का उल्लंघन किया, जिसकी वजह से अमेरिका में अब इस पूरे मामले की जांच हो रही है.

वारंट जारी होने का क्या मतलब?

दरअसल, अमेरिका में अभियोग का मतलब सिर्फ एक औपचारिक लिखित आरोप होता है जिसे एक अभियोजक (शिकायत कर्ता) द्वारा दर्ज कराया जाता है. उसके बाद ग्रैंड जूरी की तरफ से अपराध के आरोपी के खिलाफ अभियोग पत्र जारी किया जाता है. यानी अभियोग पत्र जारी होते ही आरोपी के खिलाफ स्वत: गिरफ्तारी वारंट जारी हो जाता है.

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आगे क्या कानूनी प्रक्रिया होगी?

जब किसी व्यक्ति पर आरोप लगाया जाता है तो उसे औपचारिक सूचना दी जाती है कि माना जाता है कि उन्होंने अपराध किया है. फिर वो (आरोपी पक्ष) अपने बचाव के लिए वकील को अपॉइंट कर सकता हैं और अपना सबूतों के साथ अपना पक्ष रख सकता है. यह मामला आगे की कोर्ट में भी जा सकता है और वहां भी आरोपी पक्ष अपना पक्ष रख सकता है. आरोपी को कोर्ट के समक्ष खुद पेश भी होना पड़ सकता है.

अभी प्रत्यर्पण की मांग नहीं कर सकता अमेरिका

अमेरिकी कानून के मुताबिक, अभियोग पत्र के बाद अब कोर्ट में इस पूरे मामले में बहस होगी. अभियोजन पक्ष और आरोपी पक्ष कोर्ट के पटल पर अपने-अपने सबूत रखेगा. हालांकि, अडानी अभी आरोपी हैं, इसलिए अमेरिका, भारत से प्रत्यर्पण की मांग नहीं कर सकता है. यह प्रक्रिया दोषी साबित होने के बाद आगे बढ़ाई जाती है.

जमानत की मांग कर सकते हैं आरोपी

अडानी समेत सभी आरोपी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के आदेश को चुनौती दे सकते हैं और गिरफ्तारी रोकने की मांग करते हैं. इस केस में जमानत के लिए भी अपील कर सकते हैं. अगर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में राहत नहीं मिलती है तो वे अमेरिकी की सुप्रीम कोर्ट में आदेश को चुनौती दे सकते हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति को सर्वोच्च अधिकार हैं. अगर राष्ट्रपति चाहें तो वो इस केस को रद्द भी कर सकते हैं.

कौन-कौन आरोपी?

जिन आठ लोगों को आरोपी बनाया गया है, उनमें अडानी ग्रुप के संस्थापक और चेयरमैन गौतम अडानी और अडानी ग्रीन कंपनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सागर अडानी (30 वर्ष), अडानी ग्रुप के पूर्व CEO विनीत जैन का भी नाम है. इसके अलावा, रंजीत गुप्ता, रूपेश अग्रवाल भी आरोपी हैं. केस में सिरिल कैबेनिज, सौरभ अग्रवाल, दीपक मल्होत्रा की भूमिका का भी जिक्र है. सागर अडानी, गौतम अडानी के भाई राजेश अडानी के बेटे हैं.

अडानी ग्रुप ने सफाई में क्या कहा...

आरोपों पर अडानी ग्रुप ने स्पष्टीकरण दिया है. ग्रुप ने इन सभी आरोपों को गलत और बेबुनियाद बताया है. अडानी ग्रुप का कहना है कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाते, तब तक उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. ग्रुप इस मामले में सभी कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहा है. ग्रुप पारदर्शिता के साथ काम करता है. अडानी ग्रुप ने अपने पार्टनर्स, हितधारकों और कर्मचारियों से ये कहा है कि उन्हें अपना भरोसा बनाए रखना चाहिए.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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