क्या बेतुके आरोपों को लेकर कनाडा पर मानहानि का केस कर सकता है भारत, क्या हैं इंटरनेशनल कोर्ट के कायदे?

4 1 9
Read Time5 Minute, 17 Second

सिख चरमपंथी लीडर हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत और कनाडा के रिश्ते बेहद कड़वे हो चुके. कनाडाई सरकार के बेसिर-पैर आरोपों से नाराज देश ने न केवल अपने डिप्लोमेट्स को वापस बुला लिया, बल्कि दिल्ली से भी कनाडाई राजनयिकों को वापस भेज दिया. इधर टोरंटो में पीएम जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता लगातार कम हो रही है, इसके बाद भी वहां बसे सिख समुदाय से उनका लगाव कम नहीं हो रहा.

आखिर, क्या वजह है जो ट्रूडो एक समुदाय के लिए भारत जैसे देश की नाराजगी मोल ले रहे हैं? और भारत क्या चाहे तो कनाडा पर मानहानि का मुकदमा इंटरनेशनल कोर्ट में ले जा सकता है?

ताजा मामला क्या है

रविवार को कनाडा से भारतीय विदेश मंत्रालय को एक डिप्लोमेटिक कम्युनिकेशन मिला. इसमें आरोप था कि भारतीय उच्चायुक्त और कई दूसरे राजनयिक कनाडा में एक जांच से जुड़े मामले में पर्सन ऑफ इंट्रेस्ट हैं. इसे आसान भाषा में समझें तो वहां की सरकार ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में इन अधिकारियों की संलिप्तता का शक जताया. ये आरोप सीधे भारतीय हाई कमिश्नर पर लगे. पिछले साल भी पीएम ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों को हाथ कहा था. हालांकि भारत इसे बेतुका बता चुका लेकिन सबसे ऊपर की लेयर से ऐसी बात आना साफ कर देता है कि कनाडा की मौजूदा सरकार को नई दिल्ली से संबंधों की परवाह नहीं. वो केवल अपने यहां बसे सिखों को खुश रखना चाहती है.

Advertisement

क्यों अपने यहां बसे सिखों के लिए नरम रहे ट्रूडो

पीएम जस्टिन ट्रूडो अपने यहां बसे सिख समुदाय, खासकर उन लोगों के लिए भी उदार हैं, जिन्हें भारत सालों पहले चरमपंथी घोषित कर चुका. निज्जर इसका एक उदाहरण है. इसके अलावा, कनाडा में बसे सिख वहां पूरे हक से रहते हैं, और राजनीति में भी भारी एक्टिव हैं. सिख समुदाय वहां एक बड़ा वोट बैंक है. साल 2021 की जनगणना के अनुसार, वहां लगभग पौने 8 लाख सिख वोटर हैं. इनकी ज्यादा जनसंख्या ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, एडमोंटन, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है. चुनाव के दौरान ये हमेशा बड़े वोट बैंक की तरह देखे जाते हैं. यहां तक कि वहां के मेनिफेस्टो में इस कम्युनिटी की दिक्कतों या इनके विकास पर जमकर बात होती है.

india canada diplomatic relations soured amid khalistani separatist hardeep singh nijjar murder in canada photo- AP

वर्तमान सरकार भी कनाडाई सिखों के भरोसे

फिलहाल जो हालात हैं, वो कुछ ऐसे हैं कि सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है. साल 2019 में चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी मेजोरिटी से 13 सीट पीछे थी. ये जस्टिन ट्रूडो की पार्टी थी. तब सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सपोर्ट दिया, जिसके लीडर हैं जगमीत सिंह धालीवाल. ये खालिस्तानी चरमपंथी है, जिसका वीजा साल 2013 में भारत ने रिजेक्ट कर दिया था. सिखों की यही पार्टी ब्रिटिश कोलंबिया को रूल कर रही है. बता दें कि ये अपने एंटी-इंडिया सेंटिमेंट के लिए जानी जाती है.

Advertisement

रह-रहकर निज्जर की हत्या को लेकरभारत पर अंगुली क्यों उठा रहे ट्रूडो

इसका संबंध भी राजनीति से प्रेरित लगता है. अगले सालअक्टूबरमें वहां इलेक्शन्स हो सकते हैं. इससे पहले ही मौजूदा सरकार की लोकप्रियता गिर चुकी. यहां तक कि कई पोल्स बता रहे हैं कि कनाडा केलोग, ट्रूडो सरकारको किसी हालत में वापस नहीं चाहते. हाल में हुए आईपीएसओएस सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 26% लोग ट्रूडो को पीएम के तौर पर देखते हैं. वहीं विपक्षी कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीवरे को लगभग 45 फीसदी लोग पीएम पद पर चाहते हैं.

गिरती लोकप्रियता के बीच मौजूदा सरकारको कनाडा में बसे सिखों का ही सहारा है, जो न केवल वोट बैंक की तरह, बल्कि पॉलिटिकल पार्टी की तरह भी साथ खड़े हो सकते हैं.

india canada diplomatic relations soured amid khalistani separatist hardeep singh nijjar murder in canada photo Getty Images

अलगाववादियों के किन कामों को खुला बढ़ावा

- हर साल ऑपरेशन ब्लूस्टार पर खालिस्तानी चरमपंथी प्रोटेस्ट करते हैं, जिसमें भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या को मॉक किया जाता है.
- कनाडा सरकार ने भारत के विरोध के बावजूद खालिस्तान पर जनमत संग्रह को रोकने से इनकार कर दिया था.

- दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि के बाद भी चरमपंथी कनाडा में शरण ले रहे हैं और वहां की सरकार उन्हें प्रोटेक्ट कर रही है.

- वहां मंदिरों पर हमले और हिंदू समुदाय के खिलाफ हेट स्पीच के मामले भी बीते सालों में बढ़े, जिनपर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं दिखी.

Advertisement

क्या मानहानि का केस हो सकता है

ट्रूडो सरकार के बेतुके आरोपों के जवाब में भारत ने अपने हाई कमिश्नर समेत कई राजनयिकों को बुला तो लिया, लेकिन आगे क्या एक्शन हो सकता है? क्या हम चाहें तो कनाडा पर मानहानि का केस कर सकते हैं? ये थोड़ा पेचीदा मामला है, जिसका सीधा जवाब हां या न में नहीं हो सकता. देश चाहें तो एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगाने का दावा कर सकते हैं, लेकिन कानूनी तौर पर मानहानि का केस नहीं हो सकता, जैसे दो लोगों या संस्थाओं के बीच होता है.

अगर कोई देश, किसी के झूठे आरोपों पर नाराज हो तो वो अपने रिएक्शन डिप्लोमेटिक तरीकों से देता है. जैसे वो औपचारिक तौर पर लिखित में विरोध दर्ज करता है, जिसे डिप्लोमेटिक प्रोटेस्ट कहते हैं. या फिरदोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध कम कर दिए जाते हैं, जैसा भारत ने फिलहाल किया. बायलैटरल रिश्ते कमजोर कर दिए जाते हैं. आहत देश अपनी बात इंटरनेशनल मंच जैसे यूएन में रख सकता है. इससे अपना पक्ष तो साफ होता है, साथ ही दूसरे देश को घेरना भी मकसद रहता है.

इंटरनेशनल कोर्ट में इस रूप में आते हैं मानहानि के केस

कानूनी तौर पर मानहानि का मुकदमा करने की बजाए चोट खाया देश कूटनीतिक तौर पर अगले को घेरता है. इसे सऊदी अरब और कनाडा विवाद से भी समझ सकते हैं. साल 2018 में कनाडा ने सऊदी में महिलाओं के हालात पर काफी कुछ कह दिया था. सऊदी ने इसे मानहानि मानते हुए कनाडा से न केवल राजनयिक रिश्ते सीमित किए, बल्कि उससे व्यापार में भी काफी कमी कर दी.

Advertisement

इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में मानहानि के सीधे मामले नहीं जाते, बल्कि उन्हें देशों की संप्रभुता पर अटैक की तरह अदालत में पेश किया जाता है. मिसाल के तौर पर साल 2017 में सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, और मिस्र ने कतर पर टैररिज्म के सपोर्ट का आरोप लगाते हुए उससे अपने डिप्लोमेटिक और इकनॉमिक रिश्ते तोड़ लिए थे. गुस्साए कतर ने इंटरनेशनल कोर्ट की शरण ली और दावा किया कि यूएई समेत बाकी देश उसकी इमेज को जानकर खराब कर रहे हैं.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

गोरखनाथ बाबा कौन हैं, अवधेश प्रसाद के खिलाफ जिनकी याचिका ने रोक दिया मिल्कीपुर में चुनाव?

अभय सिंह राठौड़, लखनऊः चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ ही यूपी समेत अन्य राज्यों में होने वाले उपचुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। यूपी में 10 सीटें रिक्त है, लेकिन चुनाव आयोग ने 9 विधानसभा सीट की तारीखों का ऐलान किया

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now