RSS का सपोर्ट, वोकल फॉर लोकल का नारा... हरियाणा में BJP ने कैसे पलट दी हाथ से निकली बाजी?

4 1 5
Read Time5 Minute, 17 Second

जाटलैंड हरियाणा में बीजेपी ने एक बार फिर जीत का परचम लहरा दिया है. इस हैट्रिक से पार्टी का उत्साह बढ़ा हुआ है लेकिन यहां कांग्रेस से मिल रही कड़ी टक्कर के बावजूद बीजेपी ने हाथ से निकली हुई बाजी किस तरह पलट दी. इस पर गौर करना काफी रोचक है. आखिर वे कौन से फैक्टर्स थे, जिनकी वजह से बीजेपीहरियाणा की पॉलिटिकल जलेबी का स्वाद चखने में कामयाब रही.

बीजेपी एक बेहद सधी हुई स्ट्रैटेजी के साथ चुनाव में उतरी थी. पार्टी नेअपना वोट बेस मजबूत करने से लेकर स्थानीय मुद्दों पर फोकस कर अपनी जीत पर मुहर लगाईहै. हरियाणा चुनाव में बीजेपी का पूरा प्रचार भ्रष्टाचार मुक्त सरकार, रोजगार के अवसर और किसानों के लिए लाभप्रद योजनाओं के आसपास रहा. बीजेपी की पारदर्शी रोजगार से संबंधित नीतियों का फायदा भी बीजेपी को मिला है.

बीजेपी की जीत में RSS भी बड़ा फैक्टर!

बीजेपी ने सधी हुई रणनीति के साथ ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस किया. इसके लए बीजेपी ने आरएसएस की मदद ली. लोकसभा चुनाव के दौरान आरएसएस के कार्यकर्ता कथित तौर पर बीजेपी से खुश नहीं थे लेकिन आरएसएसने हरियाणा चुनाव के दौरान ऐसे समय में सक्रिय भूमिका निभाई, जब बीजेपी को मदद की सबसे अधिक जरूरत थी. बीजेपी के लिए यहां आरएसएस ने जमीनी स्तर पर काम किया. ऐसे में कहा जा सकता है किहरियाणा में बीजेपी की दमदार परफॉर्मेंस में आरएसएस की बड़ी भूमिका रही है.

Advertisement

हरियाणा कीसत्ता में दस साल तक रहने के बावजूद बीजेपी का वोट शेयर कांग्रेस के 39.1 फीसदी की तुलना में 40 फीसदी है. लेकिन विपक्षी वोटों में टूट से बीजेपी को फायदा हुआ, खासकर असंध, पुंडरी, अंबाला कैंट और अन्य सीटों पर बीजेपी को फायदा हुआ है.

कांग्रेस का ओवरकॉन्फिडेंस बीजेपी के लिए बना संजीवनी

कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास भी बीजेपी के लिए फायदेमंद हुआ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा जैसे नेताओं ने प्रचार करने की तुलना में मुख्यमंत्री पद के लिए दिल्ली में लॉबिंग करने में अधिक समय लगाया. राहुल गांधी ने हरियाणा में सिर्फ आठ जनसभाएं की जबकि प्रियंका गांधी यहां दो दिन ही रुकी थीं. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि कांग्रेस को शुरुआत से ही लग रहा था कि उनकी पार्टी आसानी से हरियाणा जीत लेगी. इस वजह से पार्टी ने प्रचार को गंभीरता से नहीं लिया.

बीजेपी को विपक्षी खेमे की असंतुष्टतताविशेष रूप से कांग्रेस की अंदरूनी कलहका भी फायदा मिला. पार्टी की बड़ी दलित नेता कुमारी सैलजा को दरकिनार करने को भी पार्टी ने खूब भुनाया. राहुल गांधी की सक्रियता के बावजूदआम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाने से भी बीजेपी को फायदा पहुंचा.

बीजेपी ने गैर जाटों पर बढ़ाया फोकस

Advertisement

कांग्रेस का पूरा फोकस जाट वोटर्स पर था, जिस वजह से अन्य समुदायों पर उनका ध्यान नहीं गया. लेकिन बीजेपी ने यह गलती नहीं की. इस बार के चुनाव में गैर जाट वोटों की बड़ी भूमिका है.इस बार के नतीजों में दलित वोट बंटे हुए थे. राज्य में दलितों की 22.5 फीसदी की आबादी में से सिर्फ 8.5 फीसदी के ही वोट बीजेपी, कांग्रेस और अन्य पार्टियों में बंटे नजर आए. दलितों में 14 फीसदी की आबादी वाले डिप्राइव्ड शेड्यूल कास्ट (डीएससी) ने बड़े पैमाने पर बीजेपी को वोट किया.

इस बार चुनावी मैदान में बीजेपी ने 14 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया था. पार्टी का फोकस ओबीसी, ब्राह्मण और पंजाबियों जैसे ऊंची जाति वाले उम्मीदवारों पर था. पार्टी की इस स्ट्रैटेजी से बीजेपी को मजबूती मिली. इसके अलावा चुनाव से कुछ दिन पहले राम रहीम को पैरोल दिए जाने का भी बीजेपी को लाभ मिला.

इसके अलावा सैनी फैक्टर भी बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा.हरियाणा के मुख्यमंत्री पद पर मनोहर लाल खट्टर के बजाए नायब सिंह सैनी को बैठाने से भी पार्टी को लाभ हुआ. सैनी ओबीसी नेता हैं.

Live TV

\\\"स्वर्णिम
+91 120 4319808|9470846577

स्वर्णिम भारत न्यूज़ हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं.

मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Laptops | Up to 40% off

अगली खबर

Ground Report: दिल्ली में नाबालिगों के हाथ में ई-रिक्शा का हैंडल...परिवार मजबूर, पुलिस ‘मैनेज’!

आपके पसंद का न्यूज

Subscribe US Now