लगातार तीसरी बार सरकार, हाफ के बाद भी नहीं हुई साफ... हरियाणा में BJP की जीत से टूटे कई ट्रेंड

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हरियाणा राज्य 1967 में पंजाब से अलग होकर अस्तित्व में आया था और पंडित भगवत दयाल शर्मा सूबे के पहले मुख्यमंत्री बने थे. तब से लेकर अब तक, करीब 57 साल के स्वतंत्र चुनावी इतिहास में हरियाणा ने आया राम-गया राम के दौर से लेकर प्रचंड बहुमत की सरकार तक, सियासत के कई दौर देखे हैं. हरियाणा की जनता ने कभी किसी पार्टी को सिर आंखों पर बिठाया तो फिर एक-दो मौकों के बाद जमीन पर भी पटक दिया.इस बार के चुनाव में जाटलैंड के मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सिर-आंखों पर बिठाया है.

हरियाणा की जनता ने बीजेपी को लगातार तीसरी बार सत्ता की कमान सौंप दी है. बीजेपी को90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में 48सीटों पर जीत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता मिलीहै. वहीं, विपक्षी कांग्रेस का विजय रथ 37सीटों पर ही रुक गया है. जनता ने सत्ता की चाबी रखने का दावा करते रहे दुष्यंत चौटाला की पार्टी को सिरे से नकार दिया है. ये चुनाव जवान-किसान के मुद्दे पर बीजेपी का कड़ा टेस्ट माने जा रहे थे और पार्टी उसमें पास रही है. हुड्डा परिवार की साख के साथ ही इन चुनावों में कई ट्रेंड भी दांव पर थे. कुछ ट्रेंड बरकरार रहे हैं तो कुछ टूट गए. आइए नजर डालते हैं ऐसे ही ट्रेंड पर.

वो चुनावी ट्रेंड जो टूट गए

तीसरी बार सरकारः हरियाणा में 1967 से लेकर अब तक, तीन मौके ऐसे आए जब जाटलैंड की जनता ने किसी दल को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का जनादेश दिया लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ था जब किसी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता मिली हो. 1968 और 1972 में कांग्रेस जीती थी. यह नए नवेले प्रदेश के चुनावी इतिहास में पहला मौका था जब कोई सरकार रिपीट हुई थी. 2005 और 2009 में कांग्रेस, 2014 और 2019 में बीजेपी की सत्ता बरकरार रही थी. इस बार तीसरी बार जनादेश नहीं मिलने का ट्रेंड टूट गया है. 2024 के विधानसभा चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ है जब हरियाणा की जनता ने किसी दल को लगातार तीसरी बार किसी दल की सरकार रिपीट की है.

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फुल मेजॉरिटी, हंग और फिर साफःहरियाणा में जो सरकारें रिपीट हुई भी हैं, 1972 का चुनाव छोड़ दें तो एक ट्रेंड रहा है- फुल मेजॉरिटी के बाद हंग असेंबली और फिर सत्ता से विदाई का. 2005 के चुनाव में सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस 2009 में सरकार बनाने में भले ही सफल रही थी लेकिन पार्टी बहुमत के आंकड़े से पीछे ही ठिठक गई थी. 2014 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई थी. 2014 चुनाव में जीत के साथ सत्ता में आई बीजेपी भी 2019 में सरकार बना ले गई लेकिन उसे बहुमत नहीं मिला था. 2024 चुनाव में फिर से बीजेपी की जीत के साथ हंग असेंबली के बाद सत्ता से विदाई का ट्रेंड भी टूट गया.

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40 का फेरः 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस ने तब सरकार भी बनाई लेकिन अगले चुनाव में उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. 2019 के चुनाव में बीजेपी भी 40 के फेर में फंसकर रह गई थी. इस बार एग्जिट पोल अनुमानों में सैनी सरकार की विदाई के संकेत के बाद यह माना जा रहा था कि 40 के फेर में फंसने के बाद सत्ता गंवाने का ट्रेंड इस बार भी बरकरार रहेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने इस बार छलांग लगाते हुए पूर्ण बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है.

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बरकरार रहा ये ट्रेंड

हरियाणा चुनाव कांग्रेस के सपने, जवान-किसान को लेकर नैरेटिव से लेकर कई चुनावी ट्रेंड्स तोड़ने वाला साबित हुआ. टूटने की इस लहर में एक ट्रेंड में एक ट्रेंड ऐसा भी है जो साबुत बच गया है. वह ट्रेंड है दिल्ली और चंडीगढ़ में एक ही दल के निजाम का. हरियाणा के अलग राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक के इतिहास में कुछसाल छोड़ दें तोसूबे में उसी की सरकार रही है, जिसके पास केंद्र की सत्ता हो. साल 1991 से अब तक सूबे में एक ही पार्टी की सरकार का ट्रेंड चला आ रहा है जो इस बार भी बरकरार रहा.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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