शहादत पर मिला पैसा परिवार में किसे मिलता है? सेना के कौन से नियम में बदलाव चाहते हैं कैप्टन अंशुमान के पिता

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पिछले साल 19 जुलाई को सियाचिन में शहीद हुए कैप्‍टन अंशुमान सिंह को कुछ दिन पहले राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कीर्ति चक्र से सम्‍मानित किया गया. यह सम्मान उनकी पत्‍नी स्‍मृति और मां मंजू सिंह ने ग्रहण किया. इस कार्यक्रम के बाद अंशुमान की पत्नी स्‍मृति का एक वीडियो भी सामने आया जिसमें वह बता रही हैं कि कैसे उनकी अंशुमान सिंह से मुलाकात हुई और शादी के मात्र पांच महीने बाद ही वह विधवा हो गईं.

इस समारोह के कुछ दिन बाद ही अंशुमान सिंह के माता-पिता का दर्द सामने आया है. उन्होंने कहा है कि शहीद अंशुमान सिंह की पत्नी स्मृति पति अंशुमान की फोटो एल्बम, कपड़े और अन्य यादों के साथ सरकार के द्वारा दिए गए कीर्ति चक्र को लेकर अपने घर गुरदासपुर चली गई हैं. आरोपों के अनुसार, वह न सिर्फ माता-पिता के शहीद बेटे का मेडल लेकर गईं बल्कि उसके दस्तावेजों में दर्ज स्थायी पते को भी बदलवाकर अपने घर गुरदासपुर का करवा दिया है.

अंशुमान के पिता चाहते हैं NOK नियमों में बदलाव
शहीद अंशुमान के पिता रवि प्रताप सिंह ने कहा, 'बेटे को उसके अदम्य साहस के लिए कीर्ति चक्र मिला तो नियम था कि मां और पत्नी दोनों यह सम्मान लेने के लिए जाते हैं. अंशुमान की मां भी साथ गई थीं. राष्ट्रपति ने मेरे बेटे की शहादत पर कीर्ति चक्र दिया लेकिन मैं तो उसको एक बार छू भी नहीं पाया.'

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कैप्टन अंशुमान के पिता ने आगे कहा कि वे एनओके(Next of Kin) यानि 'निकटतम परिजन' नियमों में बदलाव चाहते हैं, क्योंकि उनकी बहू स्मृति सिंह अब उनके साथ नहीं रहती है.उन्होंने कहा कि एनओके का जो निर्धारित मापदंड है वह ठीक नहीं है. इसे लेकर उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से तक बात की है.

उनके इस बयान के बाद से ही एक बार इस एनओके के नियमों को लेकर चर्चा होने लगी है. रवि प्रताप सिंह से पहले भी कई शहीद परिजन भीइन नियमों में बदलाव की मांग कर चुके हैं.

NOK नियम क्या हैं?
NOK (Next of Kin) का अर्थ व्यक्ति के जीवनसाथी, निकटतम रिश्तेदार, परिवार के सदस्य या कानूनी अभिभावक से है. जब कोई शख्स सेना में भर्ती होता है तो उसके माता-पिता या अभिभावकों को NOK के रूप में नामांकित किया जाता है. सेना के नियमों के अनुसार, जब कोई कैडेट या अधिकारी शादी करता है, तो उसके माता-पिता के बजाय उसके जीवनसाथी का नाम उसके निकटतम रिश्तेदार (NOK) के रूप में नामांकित किया जाता है.

ऐसी स्थिति में NOK को मिलते हैं सभी लाभ

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नियमों के अनुसार, अगर सेवा के दौरान किसी जवान/ऑफिसर को कुछ हो जाता है तो अनुग्रह राशि से लेकर तमाम सैन्‍य सुविधाएं NOK को दी जाती हैं. यानि अगर सैनिक शादीशुदा है तो सारी धनराशि पत्नी को दी जाती है और अगर शादीशुदा नहीं है तो फिर यह अनुग्रह राशि मां-बाप को दी जाती है. रवि प्रताप सिंह इन्हीं नियमों में बदलाव चाहते हैं जिससे शहीद की विधवा के अलावा मां-बाप को भी अनुग्रह राशि का हिस्सा मिले.

राज्य सरकारों ने अपने नियमों में बदलाव
कई मामलों में ऐसा आया है जहां शहीद के परिजनों, विशेषकर मां-बाप ने आरोप लगाया है कि बेटे की शहादत के बाद जो भी पैसा सरकार या सेना द्वारा दिया गया, उसे लेकर चले गईं या फिर उसने दूसरी शादी कर ली. हालांकि शहीदों को राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली आर्थिक मदद को लेकर कई राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर नियमों में बदलाव किए हैं जिनमें शहीद की पत्नी के अलावा मां-बाप का भी ध्यान रखा गया है.

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मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने पिछले महीने ही कैबिनेट बैठक के बाद शहीद के परिजनों को दी जाने वाली वित्तीय मदद को लेकर अहम फैसला लिया था. फैसले के मुताबिक, सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस बल सहित सुरक्षाकर्मियों की शहादत की स्थिति में परिवार को दी जाने वाली वित्तीय सहायता शहीद के की पत्नी और माता-पिता के बीच बराबर बांटी जाएगी, यानि 50 फीसदी राशि पत्नी और 50 फीसदी धनराशि मां-बाप को दी जाएगी. पहले 100 फीसदी राशि केवल पत्नी को मिलती थी.

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उत्तर प्रदेश: जून 2020 में यूपी की योगी सरकार ने शहीद सैनिकों के आश्रितों को लेकर फैसला लिया था. तब सरकार ने केन्द्रीय एवं प्रदेशों के अर्द्ध सैन्यबलों तथा भारतीय सेना के तीनों अंगों में शहीद होने वाले प्रदेश के सैनिक परिवार दी जाने वाली 25 लाख रुपये की अनुग्रह राशि को बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया था. इसमें फैसला लिया गया है कि अगर शहीद के माता-पिता जीवित हैं तो उन्हें भी यह सहायता मिलेगी जिसमें से 35 लाख शहीद की पत्नी तथा 15 लाख मां-बाप को दिए जाते हैं. अगर मां-बाप जीवित नहीं हैं तो उस स्थित में पूरी धनराशि पत्नी को दी जाती है.

हरियाणा: हरियाणा सरकार ने 2017 में एक अहम फैसला लेते हुए कहा था कि शहीद होने के बाद जवान की पत्नी को जो 100 फीसदी सम्मान राशि दी जाती थी उसका एक हिस्सा मां-बाप को भी दिया जाएगा. हरियाणा सरकार के संशोधित मानदंडों के अनुसार कुल सहायता राशि में से 70 प्रतिशत अनुग्रह अनुदान शहीद की विधवा और बच्चों दी जाती है बची हुई 30 फीसदी धनराशि शहीद के माता-पिता को दी जाती है.यदि माता-पिता नहीं हैं तो यह सहायता जारी शहीद की विधवा औऱ बच्चों को दी जाती है.

इन राज्यों के अलावा उत्तराखंड और राजस्थान जैसे राज्य भी अपने स्तर पर शहीद के माता-पिता को आर्थिक मदद देते हैं.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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