लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही यह माना जा रहा था कि इस बार सत्ता पक्ष के लिए खुले मैदान जैसी स्थिति नहीं होगी, उसे विपक्ष कीचुनौती से जूझना होगा. संसद का बजट सत्र आने वाला है लेकिन उससे पहले संपन्न हुए विशेष सत्र के दौरान समीकरण बदले-बदले नजर आए. संख्याबल के लिहाज से सत्ता पक्षभले ही सबकुछ अपनेमुफीद होने का दावा कर रहा हो, किसी दबाव में नहीं झुकने की बात कहरहा हो लेकिनये बदले समीकरण दूरगामी संदेश देते हैं.
लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों केशपथ ग्रहण से लेकर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा तक, विपक्ष ने आक्रामक तेवर दिखाए. लोकसभाचुनावमें संख्याबल के तराजू परविपक्ष की मजबूती के बाद ये संभावित भी था लेकिन संसद के दोनों सदनों में कई मौके ऐसे भी आए जब मामला स्पीकर या सभापति बनाम होता नजर आया. संसद का पहले सत्र ने ये संकेत कर दिया है कि विपक्ष के निशाने पर केवल सत्ता पक्ष ही नहीं, आसन भी निशाने पर होगा.
विपक्ष ने सांसदों को शपथ दिलाने के लिए प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति पर सवाल उठाकर, सांसदों को शपथ दिलाने में उनकी सहायता से इनकार करके ये संदेश दे दिया था कि इस बार आसन के लिए भी सदन का संचालन आसान नहीं रहने वाला. स्पीकर चुनाव की बात आई तो पक्ष-विपक्ष में सहमति नहीं बन सकी. नतीजा ये रहा कि विपक्ष ने संख्याबल के लिहाज से हार सुनिश्चित देख भी उम्मीदवार उतार दिया. दशकों बाद स्पीकर चुनने के लिए मतदान हुआ. ओम बिरला ध्वनिमत से लगातार दूसरी बार स्पीकर चुन लिए गए, लेकिन इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज होगा कि उनके खिलाफ विपक्ष ने के सुरेश को उम्मीदवार उतारा था.
अपने पहले कार्यकाल में आम सहमति से स्पीकर चुने गए ओम बिरला को दूसरी बार इस आसन तक पहुंचने के लिए विपक्ष की चुनौती से पार पाना पड़ा. ओम बिरला के स्पीकर चुन लिए जाने के बाद संसदीय परंपरा के मुताबिक फ्लोर लीडर्स की ओर से उनको बधाई देने का सिलसिला शुरू हुआ. नेता सदन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों के फ्लोर लीडर्स जहां ओम बिरला को निष्पक्ष अध्यक्ष बताते नजर आए तो वहीं विपक्षी दलों ने बधाई देने के मौके से ही निष्पक्षता का सवाल उठाते हुए स्पीकर को अपने संख्याबल का एहसास कराना शुरू कर दिया.
बधाई संदेशों से ही विपक्ष ने दिखा दिए तेवर
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने स्पीकर चुने पर ओम बिरला को बधाई देते हुए कहा कि सरकार के पास ज्यादा पॉलिटिकल पावर है लेकिन विपक्ष भी भारत का प्रतिनिधित्व करता है. हमें भरोसा है कि आप हमारी आवाज उठाने देंगे. विपक्ष की आवाज दबाना अलोकतांत्रिक है. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने निष्पक्षता को इस महान पद की महान जिम्मेदारी बताते हुए यह भी कह दिया- किसी भी जनप्रतिनिधि के निष्कासन जैसा न हो. किसी भी जनप्रतिनिधि की आवाज नहीं दबाई जानि चाहिए. आपके इशारे पर सदन चले, इसका उल्टा न हो.
टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने अपनी बधाई स्पीच में सांसदो एक दिन में 140 सांसदों के निलंबन की याद दिलाई और यह भी जोड़ा- आसन सत्ताधारी दल के दबाव में न आए, जैसा पहले हुआ है. इस दौरान विपक्षी सांसदों ने 'शेम, शेम' के नारे भी लगाए. वहीं, सुप्रिया सुले ने कहा- अगले पांच साल सांसदों के सस्पेंशन के बारे में न सोचें. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने स्पीकर को बधाई देते हुए यह भी कहा- इस हाउस का कैरेक्टर बदल चुका है. अब बीजेपी स्टीम रोल नहीं कर पाएगी.
दूसरी इनिंग की निंदा प्रस्ताव से शुरुआत, इसी से सत्र का समापन
बधाई वाले संबोधनों का दौर थमा ने ओम बिरला ने इमरजेंसी के खिलाफ प्रस्ताव पेश कर, कांग्रेस की तत्कालीन सरकार की ओर से संविधान की भावनाओं को कुचले जाने की बात कर विपक्ष को ये संदेश दे दिया कि वह दबाव में आने वाले नहीं हैं. धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने स्पीकर के पीएम मोदी से हाथ मिलाते समय झुकने की बात उठा दी. स्पीकर इस पर आसन से सफाई देते नजर आए, अपने संस्कार बताते नजर आए. पीएम मोदी जब धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब दे रहे थे, तब हंगामा कर रहे विपक्ष के सांसदों को फटकार लगाते हुए स्पीकर ने राहुल गांधी के व्यवहार को अमर्यादित बताया.
स्पीकर चुने जाने के बाद बधाई संदेशों की औपचारिकता के बाद ओम बिरला निंदा प्रस्ताव लेकर आए, इमरजेंसी की भर्त्सना की, कांग्रेस को निशाने पर रखा. एक तरह से कह सकते हैं कि ओम बिरला की बतौर स्पीकर दूसरी इनिंग निंदा प्रस्ताव से शुरू हुई. धन्यवाद प्रस्ताव पारित होने के बाद, सदन की कार्यवाही स्थगित होने से पहले भी एक निंदा प्रस्ताव पारित हुआ. ये निंदा प्रस्ताव नेता सदन प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन के दौरान विपक्ष के व्यवहार को लेकर था. निंदा प्रस्ताव के साथ ही सत्र का समापन हुआ.
राज्यसभा में भी हाई रहा आसन-अपोजिशन का टेंपो
लोकसभा ही नहीं, उच्च सदन राज्यसभा में भी विपक्ष और आसन का टेंपो हाई रहा. राज्यसभा में कई मौके ऐसे आए जब विपक्ष और सभापति जगदीप धनखड़ के बीच तीखी तकरार देखने को मिली. सभापति धनखड़ ने सख्ती बरती तो विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का रौद्र रूप भी नजर आया. विपक्षी सदस्यों के साथ विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी वेल में आए. सभापति ने इसे लेकर दागी दिन की टिप्पणी की तो सदन के बाहर खड़गे ने सभापति पर विपक्ष के नेता की अनदेखी कर जानबूझकर अपमान का आरोप लगा दिया. सभापति ने इसे पीड़ादायक बताते हुए जब ये कहा कि यह अत्यंत पीड़ादायक है, जो कदम उठाए जाने चाहिए वह उठाए जा रहे हैं और हमारा ऑफिस एक्शन में है. विपक्ष ने वॉकआउट कर दिया.
विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे जब धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलने खड़े हुए, कहा कि कुछ बातें बोलने जा रहा हूं, इन्हें कार्यवाही में बनाए रखिएगा. सभापति ने ऑथेंटिकेट करने की बात कही तो विपक्षी सदस्यों की ओर से तुरंत ही आवाज आई- वह (सत्ता पक्ष) के लोग झूठ बोलते रहते हैं, आप उनसे ऑथेंटिकेट करने के लिए नहीं कहते. सभापति ने न्यूज पेपर की कटिंग को ऑथेंटिकेट करने का माध्यम मानने से इनकार किया तो विपक्ष ने यह पूछ लिया- आप ही बता दें कैसे ऑथेंटिकेट करें. धन्यवाद प्रस्ताव पर पीएम मोदी के संबोधन के दौरान विपक्ष के वॉकआउट की भर्त्सना करते हुए सभापति ने इसे संविधान का अपमान बताया तो विपक्ष के नेता ने उनकी कार्यशैली पर ही सवाल उठा दिए.
आसन के लिए आसान नहीं होगी संचालन की राह
लोकसभा और राज्यसभा में कार्यवाही का संचालन आसन की जिम्मेदारी होती है. पक्ष-विपक्ष का कोई सदस्य सदन में जब किसी नियम का उल्लंघन करे तो उसे रोकने-टोकने के साथ ही स्पीकर और सभापति नियम भी बनाते हैं. लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर के परिसर में सबसे बड़े आसन को ही जब विपक्ष उसकी लक्ष्मण रेखा याद दिला रहा है, संकेत साफ हैं कि आने वाले सत्रों में भी सत्ता पक्ष के साथ ही आसन भी विपक्ष के निशाने पर होगा.
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