8 घंटे मजदूरी, 7 घंटे पढ़ाई, मां का सपना पूरा करने के लिए 21 साल के मजदूर ने क्रैक किया NEET

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पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव एगरा के 21 वर्षीय सरफराज ने जो हासिल किया, वह वाकई काबिले तारीफहै. एक समय था जब वह ₹300 की दिहाड़ी मजदूरी करने वाला एक सामान्य श्रमिक था, लेकिन आज वह NEET 2024 परीक्षा में सफलता प्राप्त करके कोलकाता के नील रतन मेडिकल कॉलेज में मेडिकल छात्र के रूप में दाखिल हो गया है. सरफराज के तीन बड़े सपने थे भारतीय सेना में शामिल होना, क्रिकेटर बनना और डॉक्टर बनना. पहले दो सपने आर्थिक कारणों से टूट गए लेकिन उन्होंने अपना डॉक्टर बनने का सपना पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की.

सरफराजने इंडिया टुडे-आज़ तक से अपनी संघर्षपूर्ण कहानी शेयर करते हुए बताया, "मैं 8 घंटे काम करता था और ₹300 कमाता था. कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान मुझे अपने परिवार का साथ देने के लिए काम करना पड़ा. उस समय, मैं अपने पिता के साथ काम करता था और मुझे NEET की तैयारी के लिए 7 घंटे मिलते थे. बाकी समय मैं सोता और घर के काम भी करता था."

मजदूरी पर परिवार का पालन पोषण करते थे सरफराज

सरफराज की यात्रा 2022 में शुरू हुई थी, जब वह प्रतिदिन 400 ईंटें उठाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करता था. उन्होंने कहा, "मेरी मां चाहती थीं कि मैं डॉक्टर बनूं. मैंने उनकी यह ख्वाहिश पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत की और तीसरे प्रयास में NEET को सफलतापूर्वक क्रैक किया लेकिन यह यात्रा बहुत कठिन थी. रात-रात भर मैं इस मुश्किल लड़ाई के बारे में सोचकर रोता था."

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मां का सपना किया पूरा

सरफराज ने आगे कहा किमेरे पास तीन सपने थे. पहला, मैं एक डिफेंस अफसर बनना चाहता था, दूसरा मैं क्रिकेटर बनना चाहता था और तीसरा जो मेरी मां का सपना था, वह था डॉक्टर बनना, जो अब पूरा हो गया है. क्रिकेट और डिफेंस के लिए मुझे पैसे की जरूरत थीऔर यही कारण था कि ये दोनों सपने मैं छोड़ चुका था. एक बार NDA की प्रैक्टिकल परीक्षा के दौरान मुझे एक एक्सीडेंट हो गया.

Youtube वीडियोज से मिली पढ़ाई में मदद

सरफराज अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार, स्कूल के शिक्षकों, निजी ट्यूटर्स और फिजिक्स वाला को देते हैं. उन्होंने कहा कि मेरे लिए प्रेरणास्त्रोत मेरे पिता, मां, मेरी निजी ट्यूशन के शिक्षक जो मुझे मुफ्त में पढ़ाते थे, मेरे स्कूल के शिक्षक और फिजिक्स वाला के स्कॉलरशिप रहे. महामारी के दौरान सरकारी सहायता से सर्फराज को एक फोन खरीदने का मौका मिल. उन्होंने YouTube वीडियो और फिजिक्स वाला के पाठ्यक्रमों का उपयोग कर अपनी तैयारी को आगे बढ़ाया. सरफराज अब एक पीएम आवास योजना के घर में रहता है और अपने पिता के साथ मिलकर अपनी मां और छोटे भाई की देखभाल करता है.

गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना चाहते हैं सरफराज़

अब एक मेडिकल छात्र के रूप में, सरफराज का सपना है कि वह गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर सके. उन्होंने कहा कि मुझे यह पता है कि मैंने क्या-क्या सहा है, किताबें उधार ली हैं, खाना पाने के लिए संघर्ष किया है. मेरी मां ने मुझे हमेशा यह प्रेरणा दी कि मैं गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करूं. मैं अपनी शुरुआत अपने गांव और शहर से करूंगा.

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सरफराज़ने यह भी कहा किमैं जानता हूं कि मैंने क्या-क्या सहा है. ऐसे समय में जब हमें मुश्किल से खाना मिलता था, तो मैं किताबें दूसरों से उधार लेता था लेकिन मेरी मां ने मुझे हमेशा सहयोग दिया. मेरी मां ने कहा कि मुझे भविष्य में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देनी चाहिए और मैं इसे पूरा करूंगा. इसी कारण मुझे सफल होना है और मैं एक डॉक्टर बनकर लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं देने में सक्षम होऊंगा. सभी ने मेरा बहुत समर्थन किया और इसीलिए मैं सबसे पहले अपने गांव और शहर से शुरुआत करूंगा. सरफराज़ की कहानी मेहनत, संघर्ष और निडरता का प्रतीक बनकर उभरी है. वह यह साबित करते हैं कि अगर इरादा मजबूत हो और परिवार का समर्थन मिल जाए, तो कोई भी मुश्किल रास्ता नहीं रोक सकता.

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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