इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी में बेसिक शिक्षकों के समायोजन को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने समायोजन प्रक्रिया से जुड़ी सभी गतिविधियों को रोकने और त्रुटियों को सुधारने का आदेश दिया है. समायोजन प्रक्रिया का सीधा असर प्रदेश के करीब 80% स्कूलों पर पड़ रहा था, जिससे बड़ी संख्या में शिक्षा प्रभावित हो रही थी.
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लाखों शिक्षकों को लगा तगड़ा झटका
हाईकोर्ट ने बेसिक शिक्षा विभाग में समायोजन प्रक्रिया को अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन माना है.इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश से प्रदेश के लाखों शिक्षकों को तगड़ा झटका लगा है. इस आदेश के बाद प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के विद्यालयों में चल रहे समायोजन की प्रक्रियाप्रभावित हो गई है. ऐसे में समायोजन का इंतजार कर रहे प्रदेश के लाखों शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है.
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समायोजन के फैसले को ऐसे समझिए
जैसे एक स्कूल में 10 टीचर हैं, दूसरे स्कूल में 3 टीचर हैं , जहां 10 टीचर हैं वहां 8 की ज़रूरत है. अभी तक यह होता आया है जहां 10 टीचर हैं वहां से 2 टीचर हटा देते हैं और उन्हें समायोजित कर दूसरे कम वाले स्कूल में कर देते हैं. समायोजन में यह होता है की जो टीचर बाद में पोस्ट होता है उसको पहले हटा देते हैं. जबकि होना चाहिए जो पुराना है, उसको हटाना चाहिए था. इस बात पर बहस हुई थी. जिसको कोर्ट ने कैंसिल कर दिया है. कोर्ट ने कहा है पहले नीति बनाइए फिर समायोजित करिए.
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग में 2011 से चल रही समायोजन प्रक्रिया को लेकर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इस प्रक्रिया के तहत लागू नियम 'लास्ट कम फर्स्ट आउट' को संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के खिलाफ माना है. इसका मतलब है कि नए शिक्षकों को हमेशा वरीयता में नीचे रखा जाता है और ट्रांसफर पॉलिसी में बाहर कर दिया जाता है, जबकि वरिष्ठ शिक्षक लंबे समय तक एक ही जगह पर तैनात रहते हैं. रीना सिंह एंड अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में कोर्ट ने यह आदेश दिया है. कोर्ट का मानना है कि यह प्रक्रिया जूनियर शिक्षकों के साथ अन्याय करती है और वरिष्ठ शिक्षकों को फायदा पहुंचाती है.
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